...

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में, वो नहीं...
किचड के लगे दाग को धोने मे व्यस्त हुं
ईसिलीऐ मे कमल तो नहीं...
कश्मीर पण्डितों पे हुए जुल्म पे चुप न रह पाउं
रोहीन्ग्याओं को तो वापस जाना ही है,
देश की सुरक्षा मे अवरोध न बन पाउं
ईसिलीऐ मे वो हाथ तो नहीं...
निचे गीरे दारु से फर्स को न साफ करपाउं
ईसिलीऐ मे वो झाडु भी नहीं...
जिसके शंखनाद से, सोए हूऐ कुम्भकर्ण भी जाग जाऐ,
ऐसा कमल पर विराजे जगन्नाथ का शंख हुं
पान की विडा जो उठाए हूऐ है
ऐसे ...यान का मे अनोखा पंख हुं


© Birendra Debta