...

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पौधे और फूल का रिश्ता.......
पौधे में एक दिन कली आजाती है,
ममता की मोह में पौधा डूब जाता है......
वो अपनी बेटी की परवरिश करती है,
वो काली एक दिन फूल बन जाती है.......
पौधे में एक दिन कली आजाती है......... (1)

वो इतना मंजुल है की सच मानिये,
फूल के नजरों में नजर डालिये........
ये तो एक फरिस्ते का बरदान है,
जिसे देखते ही हमे प्यार हो जाती है.......
फूल के बदन से खुसबू आती है,
फूल की मुस्कुराहट मन मोह लेती है......
पौधे में एक दिन कली आजाती है.......(2)

पौधे की पत्तिओं से वो खेल कूद कर,
अपनी माता के प्यार में खो जाती है......
जब वो अपनी मैया से रूठ जाती है,
बेटी को माँ तो मना लेती है.......
हाथो में उठाके लोरी सुनाके,
अपनी झोली में वो तो सुलादेति है.......
पौधे में एक दिन कली आजाती है....... (3)

दुख में पौधा एक दिन डूब जाता है,
माताजी को दुखी देख फूल पूछता है......
तुम्हारे नयनो में आज आँसू क्यों हैं,
मुझे भी बताओ माँ क्या बात है.........
माता कहती हैं अश्रु से लपेटे हुए,
हमे दुख तो तुमसे बिछड़ने की है.......
पौधे में एक दिन कलि आजाती है.......(4)

दुख को सहते हुए तुम्हे पाला मैंने,
एक कलि से तुम्हे फूल बनाया मैंने......
एक दिन तुम मुझसे बिछड़ जाओगी,
तब तुम्हारे बिना में कैसे जिऊंगी......
फिर वो दोनों आपस में क्रंदन करते हैं,
दुख भरे आंसुओ में पिघल जाते हैं.......
पौधे में एक दिन कली आजाती है........ (5)

फिर उस समय एक आदमी आता है,
फूल की खूबसूरती में वो खो जाता है.....
फूल की दशा को देख वो आदमी,
फूल को पौधे से अलग करता है......
माता और बेटी दोनों बिछड़ जाते हैं,
सोचो पौधे की हालत क्या होती है.......
पौधे में एक दिन कलि आजाती है....... (6)

पौधा कहती है अश्रु से भीगे हुए,
मनुष्य तुम कितने ही निर्दयी हो.......
फूल को मुझसे तुम अलग करते हो,
प्राण को तुम तन से अलग करते हो.......
ममता का प्यार क्या है तुम्हे क्या पता,
बिछड़ने की दुख एक माँ को पता........
पौधे में एक दिन कलि आजाती है......... (7)

© akash the poet