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एक असम्भव प्रेम गाथा एक वैशया और राजा लेखक की भारी साभा में हुई बैठक में में हुई बहस।।
मै लड़की हूं,
जन्म से ,
हूं कन्या एक भटकती उम्मीद हूं।।
आज़ाद हैं ये वसनालोग,
मै एक लड़की हूं,
हूं गरीब मैं।।
मै एक मजबूरी और एक जरूरी पाठ हूं।।
हैं दर्द बहुत मगर वो सेयाही नहीं नहीं है।।
जन्म लिया मगर कुछ नहीं लिया मैंने।।
हूं एक आजाद पिंजरे की गुलाम।।
वैसे हूं तो एक वैशया मगर आजकल हर जगह वास है।।
अभी वो बलात्कारी वहां पहुचा नहीं।।
मगर लेखक उसे सभा में बंधक बनाकर प्रस्तुत करने को कहा था।।
सैनिकों को।।


कहा है वास मेरा और क्या है आस्तित्व एक असम्भव प्रेम गाथा आश्चर्य पाठ।।
#एकअसंभवपेरेमकथा
नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी
नायिका -लैसवी हैयास एक वैशया।।

#आशचृयपाठ।।