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नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो
राजस्थानी गीत --: नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो


आँधी आई पश्चिम सु कर गई सब साप सपाट
डोर बेल है लाग गई कौनी खटक बाळा कपाट
आड़ी आ गई है जाळ्या , काई करोलो आकै
नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो, देखल्यों कोई ओर जगह जाकै


बिच गाँव कं बड़ नीचे हुया करतो एक चबूतरो
ले जाया करतो संदेश पिया रे परदेश कबूतरो
राम नाम रखता मुँह पर, अब ना कोई राकै
नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो ,देखल्यों कोई ओर जगह जाकै


बित गयो पाणी कुआ मं पनघट आळी भीड़ नहीं
काख मं छोरो माथे बेड़लो नारी की वा पीड़ नहीं
लिप्या करती आँगणो गारा सु , अब कातई राखै पान्डू लाकै
नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो ,देखल्यों कोई ओर जगह जाकै


पहर घाघरों लुगड़ी काढ़ घूंघटों ऊबी बारणे कोई ना नार मले
काकी ताई भेळे रोट्यां पोवै ऐसों ना कोई चूल्हों जले
न्यारा घर और न्यारा बारणा होग्या , मन ना हरसावै पाकै
नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो , देखल्यों कोई ओर जगह जाकै


लाम्बी काळी सड़का होगी कौनी गैला बाड़ आळा
तीज त्यौहारा ब्याव सगाई घणा ही करता चाळा
गिल्ली डंडा, आँख मिचोली, खेल कब्बडी ओड़ी ना झाकै
नहीं रयो गाँव , गाँव म्हारो ,देखल्यों कोई ओर जगह जाकै