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नहीं यार, मेरे नसीब में नहीं
नहीं यार, मेरे नसीब में नहीं
यह मजदूर दिवस आते हैं
सौखिया अमीर लोग
मुझ गरीबों का मजाक बनाते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

पीठ पर खंजर भोकर
अपने औलादों को आसमान छूआते हैं
और हमसे कहते
बेटे बड़े हो गए हैं उसे भी काम पर क्यों ना ले आते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

अपनी तावा की रोटी सेकने
मुझ जैसों को आसानी से बरगलाते हैं
यह सब जो देखते हो ना कोठी बंगला कार
हमीं से करवाकर पाते हैं और ऐसो आराम की जिंदगी जीते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

हम तो हर रोज सुबह उठकर
कुदाली खुरपी लिए खेत खलियान में जाते हैं
अपने दिन कहां व
एसी कूलर पंखा वाला आते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

दो वक्त का
भोजन भी बड़ी मुश्किल हालात से मिल पाते हैं
जरा धूप से ठंडा में तो आकर देखो
सेठ कैसे झल्लाते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

झूठी तसल्ली यह
बड़े लोग मजदूर दिवस मना कर देते हैं
असलियत तो यह है
मेरे ही मेहनत खाते और मुझे बेवकूफ बनाते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

बड़े सान और शौकत से रूआब हमीं को दिखाते हैं
हमारे बनाएं छत में बैठ जाते हैं
मित्र मेरे दिल की सुनो
यह हमें इस दिन सबसे ज्यादे ग्लानि महसूस करते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,

असल में समानता की बात करते
लेकिन धरातल पर एक भी नजर नहीं आते हैं
यह लोग केवल झूठी मार्केट बना कर
अपने अपने छवि चमकते हैं
नहीं यार, मेरे,,,,,,,,
© Sandeep Kumar