...

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एक द्वंद मन के विरुद्ध
मन में एक द्वंद चल रहा है
अंदर ही अंदर एक युद्ध हो रहा है
मन की माने तो इस दुनिया में सब सुखी है
पर इस मन की बात को किसने माना है
मन चाहता है सब कुछ भूल जाए
सारी बातों को इरादों को सपनो को अपनो को भी
इस अंदर के शोर को शांत कैसे किया जाए
जो मेरे अंदर तबाही मचा रहा है
तबाही सवालों की जो मेरे को सोने नहीं दे रहा है
क्यों हम अच्छे बनने के लिए
अपनी खुशी को त्यागे
क्यों हम उसे अच्छा नही लगेगा
करके खुद का दिल दुखाया करे
दूसरो की खुशी में खुश रहो
ये कहने वाले क्यों अपनी ही खुशियां देखते है
दूसरो का नहीं हम अपने
मां बाप के प्यार को प्यार समझते है
पर बड़े होते ही क्यों ये प्यार हमे एक कर्ज जैसे लगते है जिसको चुकाने के लिए इंसान अपने
एक एक अस्तित्व को तोड़ने पर मजबूर हो जाते है
कोई रिश्ता दोनो तरफ से चलता है
तो फिर क्यों उस रिश्ते की कदर सिर्फ एक को होती है
हर कोई अपने सपनो के पीछे भागता है
फिर जब सपने पुरे हो जाते है
तो ये सपना पूरा हो गया
इसकी खुशी मनाने वाला भी साथ होना जरूरी है
ये बात क्यों भूल जाते है
क्यों जब किसी से रिश्ता जोड़ने के
बाद ही उसको अकेले की खुशी याद आती है
क्यों अकेले की खुशी को
जिंदगी भर अकेले रह कर ही मानते है
क्यों यू पल भर की खुशी के लिए
दूसरो की जिंदगी भर की खुशी नजर नहीं आते है
जिंदगी भर का साथ निभाने का वादा करने वाले
क्यों किसी का साथ बीच में छोड़ देते है



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© Nishu