...

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अब एहसास नहीं
साथ रहकर भी साथ नहीं
पास रहकर भी पास नहीं
बातें तो होती हैं बेशक
पर उनमें अब एहसास नहीं।

बदला रिश्ता
बदली मंजिल
बहके कदम
फिसला दिल
रिश्तों में दरारें पड़ गई
भरोसे की डोर
हाथों से निकल गई
दायरे भूले
मोहब्बत छूटा
दूसरे को
अपनाने की चाह में
घर बार लुटा।

अनुभूति शेष
चेतना शून्य
बदलाव आया ऐसा
पता नहीं कौन किसका है
और कैसा?

ताउम्र रिश्तों के पीछे भागे
प्यार लिए हथेली पर
मैं पीछे और वो आगे आगे
थक गई हूं भाग भाग कर
समझ गई हूं परिवर्तन को
उसकी खुशी के लिए
ख़त्म करू खुद को
दर्द के घूंट घूंट पी पी कर।।।,

3rd Aug 2020, 11:55pm
© Rohini Sharma