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मौन ✍️✍️✍️
मैं चुप हूँ तो समझो मेरा मौन बोलता है !
और बोलने से पहले सौ बार तोलता है !
जहाँ कोई शिशुपाल शब्द की मर्यादा को तोड़े !
हुई बांसुरी मौन वहां फिर चक्र डोलता है !
नहुष बने गर इच्छा के तो अधर मिलेगा तुमको
विश्वामित्र मिले उनको पर कौन मिलेगा तुमको
पाप अनगिनत करते हो तस चँवर डोलता है
तुमको ढोती इस धरनी का ह्रदय खौलता है
बने दुःशाशन तुम चिक्कारो जैसे विश्व विधाता
ना नारी सम्मान न तुमको मानव जीवन भाता
कलुषित जीवन जी खुदको भगवान् बोलता है
महाकाल बन काल तुझे हर पल टटोलता है
प्रस्तर में जीवन भरता लंका को प्रस्तर करता
उसके पालित पुत्रों पर तू वृथा अधम क्यों करता
स्वयं के नर्क के द्वार मूढ़ क्यों स्वतः खोलता है
हुई बांसुरी मौन वहां फिर चक्र डोलता है !
© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻