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ग़ज़ल
मेरा किरदार है कहानी में
हूँ मैं बेकार ज़िंदगानी में
राजा को घोड़े ने कुचल दिया औ'र
मैं फँसा रह गया था रानी में
आ गई खुद ज़मींन पर मछली
जी नहीं लग रहा था पानी में
इक इशारा ही होता ऊला में
होती हैं बाते पूरी सानी में
उम्र बचपन में ही जवाॅं कर लो
कंधे "जर्जर" न हों जवानी में
हूँ मैं बेकार ज़िंदगानी में
राजा को घोड़े ने कुचल दिया औ'र
मैं फँसा रह गया था रानी में
आ गई खुद ज़मींन पर मछली
जी नहीं लग रहा था पानी में
इक इशारा ही होता ऊला में
होती हैं बाते पूरी सानी में
उम्र बचपन में ही जवाॅं कर लो
कंधे "जर्जर" न हों जवानी में
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