...

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पत्र
शब्दों की मर्यादा को लांघ!
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
सब कुछ शब्दों से बांध
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
तुम चंद्र रश्मि सा मुझको छू लो
नभ को देखो मेरे होलो
तारों की भाषा में बात कही है मैने
बांधा है जुगनू से प्रकाश, भेदों को खोलो
तू मेरा विवरण मै तेरा शीर्षांक
शब्दों की मर्यादा को लांघ!
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
अवगुण हैं किंतु तुम्हारा हूं
तुझसे निकला उजियारा हूं
तू अग्नि ज्वाल रवि है मैं हूं आकाश
तू मेरा गृह मै अनिकेत
मेरे शब्द तेरे भावों की स्वास
शब्दों की मर्यादा को लांघ!
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
मै रिक्त यहां तुम पूर्ण करो
मेरे नयनों में अंधकार तुम ज्योति भरो
रात्रि का प्रहर है कानन है आंध
शब्दों की मर्यादा को लांघ!
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
ऋतु वसंत आते आते
संयोग सभी मिलते लाते
तुम जहां रहो संयुक्त रहो
मुझ से बोलो मेरी बातें
तुम वर्षा ऋतु के चांद
शब्दों की मर्यादा को लांघ!
हे प्रिय पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं
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