...

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"उत्कृष्ट प्रेम की दिल मे लिए अभिलाषा"
सोचा था समर्पित कर अपने-आपको
हो गया हु उनका,
क्या पता था उनकी नज़रों में था
मै अदना सा।
जिस गुरुर से पेश किया था अपने-
आपको उनके बीच,
उन्होंने ने अल्प दया दिखाकर दे
दिया था प्यार का भीख।

होता देख खुद को बर्बाद था मैं
अवाक,
स्वयं ने स्वयं से ही कर लिया था
विश्वासघात।
काम का न काज के मुहावरे मेरे
चरित्र को कर रहे थे चरितार्थ,
हाय रे हाय क्या हो गया हूँ बेकार।

मेरी कीमत इतनी न्यून सोच
नही सकता,
ऐसा ही प्यार होता है सोच कर
रोता।
आज मैं अपने-आप से गया था
हार,
क्योंकि मेरा मोल नही समझा था
यह जालिम संसार।

उत्कृष्ट प्रेम की मन मे लिए अभिलाषा,
जिनके पीछे भागता था चंचल हिरण सा।
प्रेम की पयोधि में होकर समाहित,
जिनके लिए हो गया था समर्पित।

हम उनके प्यार में संवरते रहे,
वो हमें पल-पल छलते रहे,
हाय मेरी व्यथा कथा किसे
सुनाऊ,
घूट-घूट के जियूँ या मैं मर जाऊ।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)
© Alok1109Archana