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हकीकत
अ खुदा यह कैसा आदमी तेरा मर मर कर जी रहा ना आपको सिमर रहा न खुद को देख रहा बस पैसा पैसा कर रहा झोक के खुद को भाड़ में कहता मैं मजे लूट रहा सुख के खोखले कवच में यह कैसा दुख फूट रहा शांति को निवाले में निगल रहा दूसरे के दर्द को देखकर बर्फ था जोआज अपने अनकहे किससे पर पिघल रहा
यह कैसा तेरा आदमी है खुदा मर मर कर जी रहा
गुरप्रीत उड़ाग
यह कैसा तेरा आदमी है खुदा मर मर कर जी रहा
गुरप्रीत उड़ाग
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