...

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जीवन या रक्त
जीवन के राह में
राह है या जीवन?
जो हमें यूँ उद्वेलित करता है
रक्त तक बहाने को
उन लोगों को जलाने को
जो समझ बैठे हैं
अपने को इस धरा का तानाशाह
जो समाज के विकास पर
कुंडली मारे बैठे हैं
नये विचार नये समाज को
जिन्होंने आने से रोक रखा है
नये कलियों को खिलने से
जिनके दिल में होती है बेचैनी
जिनके मस्तिष्क में गंदी नाली है बहती
ये समाज को वो हिस्से हैं
जो सड़ चुके हैं
जो गल चुके हैं
अब समाज में इनका रहना
समाज को सड़ाना है
उसमें नई कलियों को दबाना है
जिनके खिलने पर
एक नई किरण बिखरेगी
एक नई सुगंध फैलेगी
सारा वातावरण ही महकेगा
इन फूलों के सुंदर विचार से
इनके तर्कयुक्त स्वभाव से
गर ऐसे ही फूल होंगे समाज में
तभी हर खग चहकेगा आकाश में