7 views
कब होगा दर्श तुम्हारा
धू धू कर के धधक रही है
अंतर मन में ज्वाला
लपटे उठती तेज धुरंधर
नयन देख मधुशाला
प्याले छलक रहे ऐसे
जैसे समुंदर की लहरे
छूने को आतुर हो
तेरे अधरो का प्याला
तपन देह की सही न जाती
रोम रोम जलता है साला
बैचेन हो उठी ये हवाएं
ये घटाएं ये पर्वत नदिया
और चांद सितारे
मिलने को आतुर है मन
कब होंगा दर्श तुम्हारा।
© -Neeraj Mishra "Neer" ✍️
#poem #poetrycommunity
अंतर मन में ज्वाला
लपटे उठती तेज धुरंधर
नयन देख मधुशाला
प्याले छलक रहे ऐसे
जैसे समुंदर की लहरे
छूने को आतुर हो
तेरे अधरो का प्याला
तपन देह की सही न जाती
रोम रोम जलता है साला
बैचेन हो उठी ये हवाएं
ये घटाएं ये पर्वत नदिया
और चांद सितारे
मिलने को आतुर है मन
कब होंगा दर्श तुम्हारा।
© -Neeraj Mishra "Neer" ✍️
#poem #poetrycommunity
Related Stories
9 Likes
0
Comments
9 Likes
0
Comments