...

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कब होगा दर्श तुम्हारा
धू धू कर के धधक रही है
अंतर मन में ज्वाला
लपटे उठती तेज धुरंधर
नयन देख मधुशाला
प्याले छलक रहे ऐसे
जैसे समुंदर की लहरे
छूने को आतुर हो
तेरे अधरो का प्याला
तपन देह की सही न जाती
रोम रोम जलता है साला
बैचेन हो उठी ये हवाएं
ये घटाएं ये पर्वत नदिया
और चांद सितारे
मिलने को आतुर है मन
कब होंगा दर्श तुम्हारा।
© -Neeraj Mishra "Neer" ✍️

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