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रोका नही करते ... (पिता की इच्छा)
हमारे खुशियों के खातिर जो त्याग दे,
अपने सुख चैन नींद और सपने,
सिवा पिता के कोई दूसरा मिला नही करते,
रही ताजगी जबतक महकाते रहे जीवन
परिवार का बिखेर कर खुशबु अपना,
जब मुरझा जाए वो फुल तो,
उसे तोड़ कर डाली से अलग किया नही करते..
जब कदम ना थे हमारे तो,
अपने कदमों से घुमाई दुनिया हमें,
जो रुक जाएं वो कदम तो
हम उनके इच्छाओं को रोका नही करते..
जो समझ लें हमारी हर अनकही बात,
हमारी हर बिन दिखाई इशारों को,
जो रुक जाए इशारे उनके
और बात ना समझ आये तो
तो उस पिता की इच्छाओं को रोका नही करते_!!
© दीपक