...

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"तुम रात्रि-शशि की ज्योत्स्ना हो"
तुम रात्रि-शशि की ज्योत्स्ना
हो,
तुम जल में तारों की प्रतिबिंब
हो।
तुम तो प्रीत हो प्रीतम की,
तुम नवचेतना हो जीवन की।

तुम नदी हो नवयौवन की,
तुमप्रकाश स्तम्भ हो धरा
की।
तुम प्रकृत के हर रूप की
तरह निखरती,
तुम अद्भुत हो चांदनी सी।

तुम सुंदर-सुखद, सजीव
विचार की धनी,
तुम हो रागों की रागिनी।
तुम कोमल कुसुमों की
मुस्कान,
तुम नव बसंत की अभिमान।

तुम गुनगुनाती रवि की किरण,
तुम हो शुभ्रता हो तुम नीलम।
तुम आंखों की मद लाली हो,
तुम निर्भीक ज्वाला सी हो।

जो फैलाये मधुकर माया की,
तुम वो महिमा वाली हो।
तिमिर छंटता जिसके आलोक
से,
तुम अर्चना राजरानी हो-
तुम अर्चना राजरानी हो।
© Alok1109Archana