...

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शक के बीज
जिससे बेपनाह प्यार करने का तुमने....
किया था कभी दावा
पनपते ही मन में शक का बीज
फिर क्यों अपने उसी प्यार को तुमने तड़पाया था,,,!!

कहा तो करते थे चीख चीखकर....
प्यार तुम्हारा है सच्चा
देखा जब उस प्यार को किसी के साथ
फिर क्यों अपने ही प्यार को कमजोर दिखाया था,,,!!

बातों में होता था तुम्हारी बस एक ही जिक्र...
बिन तुम्हारे हम जी नही सकते
टूटा जब दिल, अपने बदले की आग में
फिर क्यों अपने ही प्यार को तुमने मार गिराया था,,,!!

बोला तो करते थे बार बार बस यही बात....
तुम्हारी खुशी में है हमारी खुशी
देखा जब अपने प्यार को खुश किसी और के साथ
फिर क्यों अपने प्यार की खुशियों को मिट्टी मे मिलाया था,,,!!

किया तो था सातों जन्म साथ निभाने का ....
वादा तुमने पूरी दुनिया के सामने
सिर्फ एक छोटी सी गलती होने पर ही
फिर क्यों अपने ही प्यार को तुमने ठुकराया था,,,!!

कहा तो यही करते थे तुम अक्सर....
भरोसा है तुम पर अपने आप से भी ज्यादा
डालकर मन को शक के माया जाल मे
फिर क्यों अपने ही प्यार पर खंजर चलाया था,,,!!


© Himanshu Singh