अपना
कभी-कभी क्यों ऐसा और यह कैसे हो जाता है
कभी-कभी कोई अपना भी पराया हो जाता है
रुलाए कोई अपना ,तो अपना मना जाता है,
अपना तो अपना है पर कभी पराया हो जाता है।।।।।।
रोते-रोते कभी-कभी सुलाया जाता है
कभी-कभी खाना भी हाथों से खिलाया जाता है ।।।
हां पर कभी-कभी अपना ही अपना क्यों हो जाता है।।
कभी बुखार भी ख,ांसी भी हो जाया करती है
कभी-कभी कोई अपना अपना सा हो जाता है।
राहों में कांटे या पत्थर को लाया जाता है
लाने को लाए पहाड़, पर अपना आ जाता है
हां पराया सा कोई अपनाया जाता है।।।।
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कभी-कभी कोई अपना भी पराया हो जाता है
रुलाए कोई अपना ,तो अपना मना जाता है,
अपना तो अपना है पर कभी पराया हो जाता है।।।।।।
रोते-रोते कभी-कभी सुलाया जाता है
कभी-कभी खाना भी हाथों से खिलाया जाता है ।।।
हां पर कभी-कभी अपना ही अपना क्यों हो जाता है।।
कभी बुखार भी ख,ांसी भी हो जाया करती है
कभी-कभी कोई अपना अपना सा हो जाता है।
राहों में कांटे या पत्थर को लाया जाता है
लाने को लाए पहाड़, पर अपना आ जाता है
हां पराया सा कोई अपनाया जाता है।।।।
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