...

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मेरे दादाजी
कुछ लोगों की कमी कभी पूरी नहीं होती,
ना ही वो कभी दिलों से भुलाए जाते हैं,
आज महीने गुज़र गए आपको गुज़रे हुए मेरे दादाजी,
पर आप आज भी हमें बेहद याद आते हैं।

मुझे याद है मेरा बचपन,
जब आप साइकिल पर मुझे घुमाते थे,
जब भी नयी क्लास में जाती थी मैं,
मेरी कापियों पर मेरे साथ कवर भी चढ़ाते थे।

सुबह सुबह उठते और पूजा करने लग जाते थे,
और जैसे ही पूजा खत्म होती,
आप चाय की चुस्कियों के साथ अखबार भी तो पढ़ जाते थे।

वक़्त पर खाते थे,
और वक़्त पर ही सोते थे,
अगर देर रात को शरारत या परेशान करे कोई,
तो आप नाराज भी तो होते थे।

हर त्यौहार और तिथि को
हमेशा याद रखते थे,
जब भी किसी नई चीज का ज़िक्र होता था घर में,
उस बात को आप बड़े गौर से सुनते थे।

जब भी कुछ मांगते थे आपसे,
आप मना नहीं कर पाते थे,
कभी ग़लती भी होती थी हमसे अगर कोई,
आप मुस्कराते और हमें माफ़ कर देते थे।

आज भी जब आपका ज़िक्र होता है घर में,
तो हम सबकी आखें भर आती हैं,
पर आपकी सिखाई हुई हर बात,
हमें आज भी बहुत कुछ समझा जाती हैं।

कैसे बीत जाता है ये वक़्त,
और हमारे कुछ अपने हमेशा के लिए हमसे दूर चले जाते हैं,
चाहे खुशी हो चाहे गम हो हमारी जिंदगी में,
दादाजी,
आप आज भी हम सभी को बहुत याद आते हैं।

© तनु