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अब डर लगता है
अब डर लगता है,अब डर लगता है।
जीवन पथ में निरंतर चलने में,
उतार-चढ़ाव के इस रास्ते में,
कभी सफलता की वसंत ऋतु है,
कभी आंधी वाला पतझड़ है,
कभी सिंधु नदी सा विशाल स्तोत्र है,
कभी सूखे रेगिस्तान सा विशम दर्द है,
फूलों की चादर सी बिखरी राह है तो
कहीं कांटे मारते डंक बहुत हैं,
मामा शकुनी से लगते कयी संबंधी हैं,
तो मित्र सुदामा भी यहां कायम है,
इस धूप-छांव से अब डर लगता है,
जीवन जीने की इस यात्रा से अब डर लगता है।।
जीवन पथ में निरंतर चलने में,
उतार-चढ़ाव के इस रास्ते में,
कभी सफलता की वसंत ऋतु है,
कभी आंधी वाला पतझड़ है,
कभी सिंधु नदी सा विशाल स्तोत्र है,
कभी सूखे रेगिस्तान सा विशम दर्द है,
फूलों की चादर सी बिखरी राह है तो
कहीं कांटे मारते डंक बहुत हैं,
मामा शकुनी से लगते कयी संबंधी हैं,
तो मित्र सुदामा भी यहां कायम है,
इस धूप-छांव से अब डर लगता है,
जीवन जीने की इस यात्रा से अब डर लगता है।।
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