...

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माली, बगीचे का
तरह तरह के पौधे लिऐ, बगीचा अजुबा
महिमा माली की हे, बगीचे से, ऐसी,
भरी पडी कई नामो से, पोथीयां कई
कभी श्रम से तो कभी धन दान से
अहंकार को दुर करें, कहता माली
खुला पोटली माली की, जब पुछ बैठे,
फिर क्युं सुंदरता विखराई बगीचे की !
दान की महिमा, न आता किसीको आंकना
माली की महीमा से ही दिल भर जाना,
दिल से दिल तक की यात्रा मे ही समस्या आना,
वेश भूषा खान पान से ही गर मन भर जाना,
तिरष्कार से मिलती गर हो खुशी अनोखा,
एक मिठे बोल के पिछे भी गर छुपा हो कोई धोखा
तो समझो की बगीचे की जान पे हे बन आई
धुप, पानी और खाद की जरुरत हे आई
केवल महिमा से अब बात न बननेवाली,
अपने ही दिल के गहराई को छुंके, दस्तक हे देना
स्मरण बने ध्यान, ऐसी अग्नि हो जब प्रज्वलीत,
देर नहीं तब लौटे बगीचे की गौरवपूर्ण अतीत,
बात है लाख टके की,
बस अब निकले दिल से, ऐक ही प्रकम्पन,
पौधों की खुशी मे, झुमे सारा गगन


© Birendra Debta