...

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तुम्ही बता मेरी जान यह कैसी माया है
तुम्ही बता मेरी जान
यह कैसी माया है
जिधर भी देखूं
उधर दिखती तेरी छाया है

तेरे बिन कुछ भी नहीं
तेरी रंगों में सबों ने गोता लगाया है
जिधर देखूं उधर दिखती तूं
यह कैसा निखार फिज़ा-ए-बहार में आया है

हुं बहुं तस्वीर तेरी
कई जगह मैंने पाया है
तुम होती नहीं हो फिर भी
मैंने तेरी परछाई से लजाया है

तुम्हीं बता यह कैसी असर
मुझमें तेरी ख्यालों का आया है
खुद को भूल कर
मैंने तुझमें समाया है

रत्ती भर भी ख्याल नहीं मुझे मेरा
तेरी जिस्म जान सब ओढ़ आया हूं
कैसी लगन, कैसी शुरूर मुझमें
बसंत बाहर सा तेरी पाया हूं

यादों की सेहरा बांध कर
तुम्हें रग-रग में समाया हूं
जहां देखा जो भी देखा
उसमें तेरा रूप पाया हूं

एक बार नहीं बार-बार मैंने
निहार-निहार कर देखा लेकिन तुम्हें पाया हूं
देख तेरी यादों में मैं
खुद को कितना पागल बनाया हूं

तुम्हें भूलना चाहा तो
और तेरी याद पाया हूं
एक रस्म ओ रीती रिवाज की तरह
तुम्हें अपना दिल चाहा बनाया हूं

नन्ही जान देख तूं
तेरी ख्याल सब को बताया हूं
तुम पलकों पर थी वहां से दिल में दिल से ज़हन में
और अब राग कविता में भी
सुर लय ताल के तरह चढ़ाया हूं

संग तेरी तस्वीर की
अब जीने का फैसला कर आया हूं
अपने दिल से अपने सिने में सिने से मांथे पर
तुम्हें बिंदी की तरह लगाया हूं

मुहब्बत का लौ जला कर
चैन को त्याग निंद को उड़ाया हूं
दिल में तेरी मंदिर बसाए
तुम्हें पाने का अलख मैंने मन में जगाया हूं

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar