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यादों के तीर और मेरी तस्वीर
महफ़िल सजी
जमा लोग हुए
फिर एक दौर चला
कहानी ओ क़िस्से भी हुए
अब जो बारी उनकी आई
साथ अपने वो उनके वफाओं की सुनानी लाई
फिर अजब एक तमाशा सा हुआ
शोर अबतक जो वफाओं की कहानी का था
फिज़ा की गूंज अब खामोशियों के पैरेहन में थी
वहाँ लगी मेरी तस्वीर पर जो नज़र उनकी पड़ी थी
वो रात जो मेरी याद भुलाने को सजी थी
सच्चाई के तरकश में अभी तस्वीर कई थी
वो तीर जो तरकश में मेरी यादों सी सजी थी
पर तीर नहीं दिल को वो तस्वीर चुभी थी
© Mojiz Kalam
जमा लोग हुए
फिर एक दौर चला
कहानी ओ क़िस्से भी हुए
अब जो बारी उनकी आई
साथ अपने वो उनके वफाओं की सुनानी लाई
फिर अजब एक तमाशा सा हुआ
शोर अबतक जो वफाओं की कहानी का था
फिज़ा की गूंज अब खामोशियों के पैरेहन में थी
वहाँ लगी मेरी तस्वीर पर जो नज़र उनकी पड़ी थी
वो रात जो मेरी याद भुलाने को सजी थी
सच्चाई के तरकश में अभी तस्वीर कई थी
वो तीर जो तरकश में मेरी यादों सी सजी थी
पर तीर नहीं दिल को वो तस्वीर चुभी थी
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