...

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इतनी मोहब्बत कम तो नहीं....!!
तू बस यूं ही सामने से आया जाया कर,
मुझे चाहे ना देख कर मुस्कुराया कर।
तेरे आने से पहले मुझे तेरी आहटें भी महसूस होती हैं, इतनी मोहब्बत कम तो नहीं।
नहीं दरख्वास्त की आ बैठ मेरे सामने, और कर गुफ्तगू जैसे करते हैं यह जहां वाले,
और मुस्कुरा के मेरा हाल ही ले पूछ।
इतनी मोहब्बत कम तो नहीं।
तुझे देखा करूं तो ऐसे तूं मुस्कुराती रहना,
तुझसे बिन जताए मैं इश्क कर बैठू,
इतनी मोहब्बत कम तो नहीं।
रहो मशगूल चाहे तुम किसी भी महफिल में,
तुझे देखूं, तुझे सोचु, तुझे चाहूं,
इतनी मोहब्बत कम तो नहीं।
मेरे जाने के बाद वह भी मुझे छुप-छुप कर देखती तो है, थोड़ा ही सही पर वह मोहब्बत करती तो है।
इतनी मोहब्बत कम तो नहीं।
वह इस तरह बोलती तो बहुत है, महफिलों में खिलखिलाती भी बहुत है।
पर जब भी हो हम से आंखें चार,
खुदा कसम वो शर्माती बहुत है...!!