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खत
कभी कभी सोचती हूं
लिखूं तुम्हे
खत
लेकिन तुम्हारी यादों के बादल
छा जाते हैं घनेरे
भीग जाते हैं मेरे खत
इससे ज्यादा क्या लिख दूं
अब
बस यही शेष है
तुम्हारे जाने के बाद
उड़ते पत्ते पतझड़ के
बिखरे ख्वाब और उड़ती धूल
एक दिन
बोझिल बोझिल हो गई सांसे
कितना कुछ था कहने को
तुम नहीं आए
तो खुद को ही लिखा खत
कह डाली वो सारी बातें
कह दिया
ये सोचकर खुद से कि
कहां तुम गए मुझे छोड़कर
मुझमें आज भी तुम ही सांस
लेते हो।
© Shraddha S Sahu
लिखूं तुम्हे
खत
लेकिन तुम्हारी यादों के बादल
छा जाते हैं घनेरे
भीग जाते हैं मेरे खत
इससे ज्यादा क्या लिख दूं
अब
बस यही शेष है
तुम्हारे जाने के बाद
उड़ते पत्ते पतझड़ के
बिखरे ख्वाब और उड़ती धूल
एक दिन
बोझिल बोझिल हो गई सांसे
कितना कुछ था कहने को
तुम नहीं आए
तो खुद को ही लिखा खत
कह डाली वो सारी बातें
कह दिया
ये सोचकर खुद से कि
कहां तुम गए मुझे छोड़कर
मुझमें आज भी तुम ही सांस
लेते हो।
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