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ग़ज़ल
जुदा होना कोई मुश्किल नहीं था,
मगर तैयार मेरा दिल नहीं था।
कोई तो वज्ह भी इंकार की हो,
मेरा दिल क्या तेरे काबिल नहीं था,
न ऐसा दिन न कोई रात गुज़री,
मेरे ख़्वाबों में तू शामिल नहीं था।
सफ़र मुश्किल भले है ज़िन्दगी का,
जो तुम थे साथ तो बोझिल नहीं था।
मेरी कश्ती रही हर पल सफ़र में,
मगर मेरा कोई साहिल नहीं था।
© शैलशायरी
मगर तैयार मेरा दिल नहीं था।
कोई तो वज्ह भी इंकार की हो,
मेरा दिल क्या तेरे काबिल नहीं था,
न ऐसा दिन न कोई रात गुज़री,
मेरे ख़्वाबों में तू शामिल नहीं था।
सफ़र मुश्किल भले है ज़िन्दगी का,
जो तुम थे साथ तो बोझिल नहीं था।
मेरी कश्ती रही हर पल सफ़र में,
मगर मेरा कोई साहिल नहीं था।
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