...

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बिछड़े हुए दिन कितने याद नही
बिछड़े हुए दिन कितने याद नही
बस हो गये जैसे बरसो हुए

हर शनिवार इतवार थमता हूँ
होगी थमी तुम भी आज कहीं

सोचता हूँ ढूँढ लिया होगा
तुमने हम - सा कोई

तुम्हारी पसन्द भी
कुछ हम सी थी पर हम नही

कोई कह दे देखा तुम्हे संग किसी के
आश्चर्य भी न हो फिर हमें

और ये सच भी न हो तो
भी है फर्क क्या

दूर तब भी थे तुम
अब भी हो मुझसे

अब मुझसे ये दूरी बर्दाश्त नही
बिछड़े हुए दिन कितने याद नही

© Karan

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