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तोड़ने का रिवाज....
"* तोड़ने का रिवाज *"
आज के इस संकुचित होने के दौर में,
तोड़ने का एक रिवाज ही चल रहा है,
इस तोड़ने से क्या क्या टूटेगा,
इसका किसी को ना पता है,
किसी ने दिल तोड़ा तो किसी ने दोस्ती तोड़ा,
किसी ने रिश्ता तोड़ा तो किसी ने विस्वास तोड़ा,
किसी ने हिम्मत तोड़ी तो किसी ने गुरुर तोड़ा,
किसी ने देश तोड़ा तो किसी ने घर तोड़ा,
मिला क्या ये तोड़ने से इसको किसी ने ना जोड़ा,
तोड़ तोड़ के इस खेल में यहां मजा सबको है बहुत आ रहा,
दुखता तो टूटने वालो को है तोड़ने वाले का क्या जा रहा,
एक कांच टूट जाये जो अगर घर में,
तो पुरे घर में हल्ला हो जाता है,
पर उसी घर जन्मों के रिश्ते टूट जाते है,
उसका किसी को भी पता नहीं चल पता है,
अब तो एक घर में चार चूल्हे जलते नजर आते है,
कहने को तो सब एक है उस घर में मगर,
ये सिर्फ पारिवारिक फोटो फ्रेम में ही एक नजर आते है,
दोस्ती भी आज के इस समय में मतलब के ख्वाहिस से होती है,
तोड़ दी जाती है उसकी दोस्ती जिसकी हैसियत छोटी होती है,
मिल के रहने और विस्वास जताने से मिलती सदा है तरक्की यहां,
तोड़ने से हमेसा दुःख, निंदा, तिरासककर, घृणा के अलावा मिलता है क्या ?
ये सोचो जरा…!!!!
© दीपक