...

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इंतज़ार

वो कौन सा लम्हा होगा, जब फिर से हम मिलेंगे,
कब ये ताले खुलेंगे, कब इंतज़ार ख़त्म होगा कभी !

हज़ारों ख्वाइशें दिल में दबाये, बैठे है खामोश सभी,
कब आएगा कोई, दुआ कर रहे हैं ख़ैरियत की सभी !

ज़िन्दगी बदल सी गई है, अब वो पहले सी बात कहाँ,
अपने अपने नशेमन में, यूँही भटकते फिर रहे हैं सभी !

कोशिश तो बहुत कर रहे, हर शक्श को बचाने की लेकिन,
शायद कोई मोजज़ा हो जाये, टल जाये सर से ये बला भी !

किसी की खबर आती है, तो दिल मायूस हो जाता है "रवि",
अपनी बदनसीबी ना हो सके, मिटटी में शामिल भी !

राकेश जैकब "रवि"