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श्याम सुदामा - २ : मिलने आया हूं
सुदामापुरी से मोक्षपुरी तक, परम मित्र चलके आया हूं,
दरिद्र दीन धनहीन सुदामा मैं, द्वारिकेश देवेश को मिलने आया हूं।

सारी दिशाओं में सबकी दशाओं में, भंडारे लगे त्रिलोक्य संपदाओं के,
भंडारे निहारि लाचारि मैं हरि को, हारे का सहारा बनाने आया हूं।
दरिद्र दीन धनहीन सुदामा मैं, द्वारिकेश देवेश को मिलने आया हूं l।

द्वार पहुंचा द्वारपालों ने रोका, परिचय पूछ पथ को टोका
बचपन का मित्र है श्याम मेरा मैं, उन्हें आवाज लगाने आया हूं।
दरिद्र दीन धनहीन सुदामा मैं, द्वारिकेश देवेश को मिलने आया हूं।।

भीतर पहुंच द्वारपाल बताते, श्याम सुदामा को मिलने अतुराते,
प्रतीक्षा कर कोई लाभ नहीं जो, भूल कर भगवन को मैं बुलाने आया हूं ।
दरिद्र दीन धनहीन सुदामा मैं, द्वारिकेश देवेश को मिलने आया हूं ।।

जिस पथ से आया था ब्राह्मण ये उस पथ को लौट कर जाने जो लगा,
स्वर्ण रथ के भ्रमणकर्ता को पथरीले पथ पर मैं मुड़कर पाता हूं,
दरिद्र दीन धनहीन सुदामा मैं, द्वारिकेश देवेश को मिलने आया हूं ।।


© Utkarsh Ahuja