...

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प्रलय
प्रकृति प्रलय का भयानक दृश्य जब भी पड़ा मेरे मन में।
शिहर उठा है मानव धारा के इस आंचल में।
चीख-चीख,कह रही धरा, तेरे अन्तर मन मानव से।
अब बस कर दोहन मत कर तूं रहने दे हरा उपवन में।
प्रकृति प्रलय का भयानक दृश्य जब भी पड़ा मेरे मन में।
छल स्वभाव तेरा है मानव, मैं तो हूं सच्ची प्रकृति।
करना है तो तूं कर प्रकाश,मानव तूं अन्तर मन में।
प्रकृति प्रलय का भयानक दृश्य जब भी पड़ा मेरे मन में।
सृष्टि विनाश का जो साधन तैयार किया तुम जग में।
उष्ण ही उष्ण बन गई धरा, मानव तेरे इस जीवन में,मानव तेरे इस जीवन में,मानव तेरे इस जीवन में।
प्रकृति प्रलय का भयानक दृश्य जब भी पड़ा मेरे मन में।
स्व रचना (अभिमन्यु)