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मन मेरा
हिय मेरी हवा जैसी
कभी सुकून की ठंडी ,
कभी गर्मी में लूह सी लग जाती है
बिछड़ती सबसे हर समय
चाहे वो ज़रूरी कितनी भी लगती हैं
उस उष्ण में आग भरती कभी,
रजनी में आराम सी दे जाती कभी
मिलना न होता पुरानी हवा से अब लोगों को
लोग देख वो रुख बदल जाती हैं....
© anonymous writer
कभी सुकून की ठंडी ,
कभी गर्मी में लूह सी लग जाती है
बिछड़ती सबसे हर समय
चाहे वो ज़रूरी कितनी भी लगती हैं
उस उष्ण में आग भरती कभी,
रजनी में आराम सी दे जाती कभी
मिलना न होता पुरानी हवा से अब लोगों को
लोग देख वो रुख बदल जाती हैं....
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