...

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कभी ठोकरे, कभी उल्फते, कभी राही हूं
कभी ठोकरे, कभी उल्फते, कभी राही हूं
मैं खुद से खुद का जिंदगी लिखने वाला स्याही हूं
मुझे किसी की चाह नहीं
मैं बाबुल वृक्ष सा मजबूत नींव सिपाही हूं
कभी ठोकरे,,,,,,,,,,

मुझे कोई ठोकर मार कर लुढ़का नहीं सकता
मजबूत पेड़ का मजबूत डाली हूं
शौक ऐ मिजाज रखता गरम हूं
क्योंकि शेरो का फौलादी छाती हूं
कभी ठोकरे,,,,,,,,,,

मन मस्त गगन में चलता, मन मस्त गगन में रहता हूं
अपना करता, अपना मन का सुनता हूं
तोता कोयल पपीहा सा मधुर स्वर गाता हूं
मैं अपने आप में मैं मस्त मगन रहता हूं
कभी ठोकरे,,,,,,,,,,
© Sandeep Kumar