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दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
ख़ुद में उलझ कर खुद को ढूंढ रहा कोई
संयम व नियंत्रण की पराकाष्ठा लांघ रहा कोई
खुद को आज़ाद कर, खुद को बांध रहा कोई
उड़ान ऊंची कर कद अपना नाप रहा कोई
खुलें आसमां में खुद को चुनौती दे रहा कोई
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
ख़ुद में उलझ कर खुद को ढूंढ रहा कोई
संयम व नियंत्रण की पराकाष्ठा लांघ रहा कोई
खुद को आज़ाद कर, खुद को बांध रहा कोई
उड़ान ऊंची कर कद अपना नाप रहा कोई
खुलें आसमां में खुद को चुनौती दे रहा कोई
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