...

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आशा की नई डोर
आशा की नई डोर पर
नए नए सपने हर रोज़ बन कर टंग रहे हैं
और जिंदगी यथार्थ क़ो देखने से आँख अपनी i चुरा रही

मन की बगिया में कोई नया प्रसून
खिलने की कोशिश नहीं कर रहा.
क्योंकि फुल के साथ काँटों क़ो
भी उनके साथ उगना पड़ता हैं
लेकिन ये शर्त फूलो क़ो नहीं भा रही