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ओस की एक बूंद
तृण की पत्तियों पर लुढ़की
ओस की एक बूंद...
न्यून, अस्तित्वहीन, उपेक्षित
इन परिभाषाओं से बेखबर
उतने ही अंश में करती है प्रतिबिंबित
संपुर्ण धरा, विशाल अंबर ।
कितना ही छोटा हो आकार उसका
पर विस्तृत है उसका अंतर्मन
रवि की स्वर्णिम आभा को भी
समाहित कर
स्वर्णिम हो उठता उसका कण कण !
स्वरचित © ओम'साई'
© aum 'sai'
ओस की एक बूंद...
न्यून, अस्तित्वहीन, उपेक्षित
इन परिभाषाओं से बेखबर
उतने ही अंश में करती है प्रतिबिंबित
संपुर्ण धरा, विशाल अंबर ।
कितना ही छोटा हो आकार उसका
पर विस्तृत है उसका अंतर्मन
रवि की स्वर्णिम आभा को भी
समाहित कर
स्वर्णिम हो उठता उसका कण कण !
स्वरचित © ओम'साई'
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