...

23 views

ओस की एक बूंद
तृण की पत्तियों पर लुढ़की
ओस की एक बूंद...
न्यून, अस्तित्वहीन, उपेक्षित
इन परिभाषाओं से बेखबर
उतने ही अंश में करती है प्रतिबिंबित

संपुर्ण धरा, विशाल अंबर ।
कितना ही छोटा हो आकार उसका
पर विस्तृत है उसका अंतर्मन
रवि की स्वर्णिम आभा को भी
समाहित कर
स्वर्णिम हो उठता उसका कण कण !

स्वरचित © ओम'साई'

© aum 'sai'