...

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तुम्हें लिख–लिख के !
मोहब्बत की कदर नहीं या तेरी कोई मजबूरी थी,
मैंने नखरे समझे जो, मगर वो तेरी मगरूरी थी,
हमें मोहब्बत थी हम तो तुम्हें सनम ही पुकारेंगे!
•अब तुम्हें लिख–लिख के ये जिंदगी गुजारेंगे!!
जिंदगी से कोई शिकवा नहीं सिर्फ तेरे एलावा,
जो मेरे साथ किया उसे क्यों ना कहूं मैं छलावा,
अपनी ख्वाहिशों को हम अपने अंदर ही मारेंगे!
•अब तुम्हें लिख–लिख के ये जिंदगी गुजारेंगे!!
जो जिंदगी में है मेरी वो तुमसे भी कहीं अच्छे है,
कैसे भुला दूं तेरे साथ गुजरे लम्हे भी तो सच्चे हैं,
अपनी गजलों में हम तुम्हें लिख–2 के सवारेंगे,
•अब तुम्हें लिख–लिख के ये जिंदगी गुजारेंगे!!