...

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ख़त -( शहर के देवता का गाँव के देवता को)
लिखेगा एक ख़त
मेरे शहर के सपनों का देवता
जब मेरे गाँव के मन के देवता को,
वो लिखेगा
यादें उन सुबह के सुनहरी किरणों की
जो खो गयीं है बंद आफिसों के कमरे में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन ताजी हवाओं और वर्जिसों की
जो खो गयीं है बनावती व्यायामशालाओं में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन तालाबों, पोखरों और नहरों में नहाने की
जो खो गयी है स्नानागारों में लगे गीजर के गर्म पानी में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन मिट्टी के चूल्हे पे पके सोंधी खुशबूदार लजीज व्यंजनों की
जो खो गयी है बंद डब्बों के खानों में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन दोस्तों के साथ मैदानों और खेतों में स्वछंद विचरण की
जो खो गयी है भीड़ भरी तंग गलियों और रास्तों में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन शाम के चौपालों और हंसी ठिठोली की
जो खो गयी है महंगे होटलों में बैठ के चाय और सिगरेट के धुएं बीच भविष्य की बातों में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन सीधे साधे सरल जान लुटाने वाले यारों की
जो खो गये है चिकनी चुपड़ी बातें करके काम निकालने वाले नये यारों में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन परिवार के प्यार, सीख, इज्जत, सम्मान, अपनापन और सहारे की
जो खो गयीं है बेहतर भविष्य बनाने की आपाधापी में लिपटे अकेलेपन, लालच, राग द्वेष, नफरत, में कहीं,
वो लिखेगा
यादें उन खुले छत के निचे खाट पे आने वाली सुकून के नींद की
जो खो गयी है चहारदीवारी के अंदर मोटे गद्देदार नरम बिस्तरों में कहीं,
वो लिखेगा
अपने पश्चाताप को
जो छोड़ आया है वो अपने स्वर्ग जैसे गाँव को कहीं_!!!
© दीपक