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तवायफ
#तवायफ
भरे बाजार में खड़ी वो
अपने ही दामन की बोली
लगा रही थी, मैं दुर खड़ी
यह नजारा देख रहीं थीं।
दामन में दाग़ समेटे
चेहरे पर मुस्कान बिखेरे
वो हर पुरुष को बुला रही थी।
इक पल में ही भीड़ उमड़ पड़ी
उसके दामन को लुटने
चन्द पैसे से ही वो बिकी जा रही थी,
अंधियारे की धुल में।
किसी आइने से गुजर रही थी मैं
मुझे उसमें मेरी ही तस्वीर नजर आ रही थी
एक सी तो थी वो ओर मैं
औरत ही तो वो खुद को बता रही थी।
हर रात सुहागन सी सजती थी
भौर भये वो विधवा हो जाया करती थी ,
आज मिली मुझे बाजारों में
मैंने भी पुछ लिया,
उसके चित्त के अंधियारे से।
तुम नारी स्वछंद
कैसे विचरण करती हों?
वो हंस पड़ी मेरी ही नादानी पर,
तुम कितनी भोली हो
मैं भी बंधी थी कभी
प्रेम पाश के अंकुश में,
वो बेंच गया मुझे
जिस्म के बाजारों में।💔✍️
© वैदेही
भरे बाजार में खड़ी वो
अपने ही दामन की बोली
लगा रही थी, मैं दुर खड़ी
यह नजारा देख रहीं थीं।
दामन में दाग़ समेटे
चेहरे पर मुस्कान बिखेरे
वो हर पुरुष को बुला रही थी।
इक पल में ही भीड़ उमड़ पड़ी
उसके दामन को लुटने
चन्द पैसे से ही वो बिकी जा रही थी,
अंधियारे की धुल में।
किसी आइने से गुजर रही थी मैं
मुझे उसमें मेरी ही तस्वीर नजर आ रही थी
एक सी तो थी वो ओर मैं
औरत ही तो वो खुद को बता रही थी।
हर रात सुहागन सी सजती थी
भौर भये वो विधवा हो जाया करती थी ,
आज मिली मुझे बाजारों में
मैंने भी पुछ लिया,
उसके चित्त के अंधियारे से।
तुम नारी स्वछंद
कैसे विचरण करती हों?
वो हंस पड़ी मेरी ही नादानी पर,
तुम कितनी भोली हो
मैं भी बंधी थी कभी
प्रेम पाश के अंकुश में,
वो बेंच गया मुझे
जिस्म के बाजारों में।💔✍️
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