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कुछ भूला ✍️✍🏻✍️
आगे बढ़ने की तलब मन में जागी तो शहर याद आया
जिम्मेदारियां थी जो गांव से मुँह मोड़कर शहर आया
अब ऐसा तो है नहीं की गाँव में हमारे सर पर छत नहीं थी
हाँ तरक्की और सफलता की बहुत बड़ी सरहद नहीं थी
वो आँगन वो खेत वो ढिबरी का उजाला मै भूला नहीं हूँ
अपने गांव की मिटटी याद है शहर आकर भूला नहीं हूँ
शहर की जगमग देखकर भी मन को ख़ुशी नहीं मिलती
सूरज तो रोज निकलता है पर नयी सुबह नहीं मिलती
हम अपनी जड़ों से दूर हैं लेकिन पाँव जमीन पर हैं
पुराने गलियारों से जुड़ाव की याद आनी लाजमी पर है
शहरी दिल अपने होकर भी कभी अपने नहीं लगते
शहर जो दिखाया करता था सपने वो अपने नहीं लगते
चाहत है तो इतनी सी की वापस अतीत में उतर जाऊँ
कुछ वक़्त नसीब हो और गांव की गलियों से गुजर जाऊँ

© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻