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मोहब्बत मे हार भी स्वीकार हैं
मोहब्बत को पाने निकली थी
लौटी हु खुद को हार कर
ना शिकायत हैं ना ही शिखवे हैं
मोहब्बत में हार भी मंजूर हैं
ऐसा नही है की दर्द नही हैं
पर अब दर्द मे जीने की आदत सी हैं
मोहब्बत मे हारा इंसान भी कमाल
का होता हैं शायद ख़ुदा का सबसे
प्यारा बंधा होता हैं
खुद को इस तरह से समेटा हैं
की अब ना हार की कोई चिंता हैं
ना किसी के खोने का कोई
डर !
© alku
लौटी हु खुद को हार कर
ना शिकायत हैं ना ही शिखवे हैं
मोहब्बत में हार भी मंजूर हैं
ऐसा नही है की दर्द नही हैं
पर अब दर्द मे जीने की आदत सी हैं
मोहब्बत मे हारा इंसान भी कमाल
का होता हैं शायद ख़ुदा का सबसे
प्यारा बंधा होता हैं
खुद को इस तरह से समेटा हैं
की अब ना हार की कोई चिंता हैं
ना किसी के खोने का कोई
डर !
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