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एक दास्तान संवाद भाग १
शेखर अपनी आंखों से आंसू साफ़ करने लगा और बोला -मुझे आज खुद अपने ऊपर मर्द
होने पर ल्लजा आ रही है ! किसी मजबूर औरत का फायदा शायद इस पुरुष प्रधान देश की फितरत बन गया ! तुम्हारी दास्तान सुनकर मैं जान गया हूं, तुमने कितना कुछ छेला है, तुमहारी बदला लेने की भावना सही है।।
लेकिन रास्ता गलत है । तुमहारा उन कुछ दरिंदों की वजह से पूरी मर्द जाती को दोषी ठहराना गलत है ! वैशया से शारीरिक संबंध बनाने वाला
हर मर्द पुरा नही होता।।
नायक नायिका से कहता हुआ।
परन्तु पता नहीं तुमने कितने घर उजाड़ दिए।

वैशया -🧕 हां साहब मुझे पता है कि मैं जो कर रही हूं और जो किया वो ग़लत है। लेकिन आप ही बताइए कि जब पुलिस ने मेरी मदद नहीं की ,
नौकरी मांगने गाई तो वहां से ज़लील किया गया। एक मजबूर बेसहारा औरत कैसे बदला ले,सकती हैं,।।

जब उसका अस्तित्व ही उसकी मरियादा नाग कर उसकी लाज नष्ट कर उसको सृंगृमिनी बनाकर प्रेम रस प्रज्वलित कर प्रेम पकवान बनाकर प्रेम गाथा अनन्त में समर्पित करने का आदेश मेरे लिए शायद अपने अस्तित्व द्वारा ही मेरी योनि से रक्त वीर्य निकालकर प्रेम उत्पन कर अपने अस्तित्व को पूनाह प्राप्त कर यह गाथा पूर्ण करना असंभव है जी स्वामी मैं जान गई इसलिए मैं अपके साथ विलुप्त होकर त्याग बलिदान कर अपके मंदिर आपके साथ अपने अस्तित्व पाकर खुश हूं उसे ऐसा कहना चाहिए था लेकिन वह अपनी अंतिम सांस लेकर हार जाती है और अंतिमिका कहलातीं।।
#अपूरण
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