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रक्षाबंधन - एक बहन के स्वाभिमान का सूत्र


इस बार मैं राखी खरीदूँगी ही, और वो भी रेशम के उन धागों से जिसमें चन्दन जैसे मोती लगे हों... हर साल की तरह वो रेशम के धागों को लपेट लपेट के माँ मोटा करके दे देती थी, वो ही बांधती आई हूँ... इस बार, डोरी पे गोटे वाली चमचमाती सी एक और डोरी उसको लपेटे सहारा दे रही हो... ऊपर एक ॐ का निशान बना लकड़ी का गोल टुकड़ा होगा, जिसके नीचे सहारा देता रुई जैसा कुछ लगा हो... मेरे भाई को कोई चीज़ चुभ न जाये...

मेरे बाबू जी एक पाठशाला के अध्यापक थे, आस पास के 10 गाँव में अकेले गणित और अंग्रेजी के टीचर... भाई भी उन्हीं की क्लास में पढ़ता था...

वैसे गाँव का स्कूल था ही कितना बड़ा, बस वो रज्जन चाचा के आम के पेड़ की छाँव से थोड़ा बड़ा...

हमारा घर छोटा था... आप सब हँसोगे...