...

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किस्मत
उसे हाल-ए-दिल मेरा पूछना ना आया मुझे बताना ना आया,
प्यार करके भी बेइंतहा उसे मुझे जताना ना आया,
मन ही मन रूठ लेता था उससे,
आंखे मिलाकर कभी लड़ पाना ना आया।


बीत गई वो तन्हाई में शामें सुबह का मेरी जमाना ना आया,
कर लेते गुफ्तगू कुछ लंबी बातों में उसे उलझाना ना आया,
पढ़ लेती वो खत भी जो गर लिखा होता मैने
शायद चश्मो में उसे आंखो को पढ़ना न आया।


वो भी कर देती कुछ इशारा उसे भी तो मुड़कर शर्माना ना आया,
कर देता उसके झुमके की तारीफ हौले से उसे मुस्कुराना न आया,
बस एक मौके के इंतजार में गुजर गया वक्त
उसके और मेरे वक्त को दो पल थम जाना ना आया।


राहें फिर से टकरा गई
बचकर निकलने का मुझे बहाना ना आया
बोली वो गुस्से में हंस भी देती तेरी बातों पर तुझे कभी हंसाना ना आया,
किस्मत में नहीं होगा तेरा मेरा साथ
मुझे हाल ए दिल तेरा पूछना ना आया तुझे बताना ना आया।