चाहत
भाग 1
"रंगभूमि" नाट्य कला मंदिर
मे नये नाटक की तैयारी चल रही थी
सारे पात्र अपने अपने,
पात्रों के डायलॉग याद करने मे लगे थे....
"ए, छोटू!!!
"जरा इधर तो आना,"
संगीता,ने छोटू को आवाज़ लगाई,"चिराग ज़ी,आ गए क्या....?
"हाँ, दीदी,आ गए !, और..काज़ल मैडम ज़ी के साथ बैठ के बेंच पे चाय पी रहे है....!
एक झटके से संगीता उठ खड़ी हुई,और जाके, उन दोनों के सामने खड़ी हो गई...
गुलाबी वस्त्र मे, लिपटी संगीता, किसी गुलाबी फूल सी लग रही थी...पर गुस्से मे थी....
चिराग, और उसकी नज़रे टकराई...
संगीता ने तुरंत उसे अनदेखा कर दिया...मुँह फेर लिया...
एक स्मित मुस्कान के साथ चिराग ने भी नज़रे झुका ली...
काज़ल ने संगीता से बैठ ने का आग्रह किया,
पर,....संगीता,हाथ मे डायलॉग के ज़ेरोक्स लिए वैसे ही खड़ी रही...
चिराग समझ रहा था... संगीता क्यों नाराज़ थी
पर वो चुप था....
उसने संगीता से कोई बात नहीं की !
कल, फिर एक चिट्ठी मिली थी उसे संगीता की
फूलो से लिपटी हुई....
प्रणय निवेदन था संगीता की ओर से
प्रिय,
मेरी उठती, गिरती पलको
मे तुम ही समाये रहते हो
मेरी नज़रे,
हर वक़्त, तुम्हे ढूंढ़ती रहती है
मै खुद के प्रेम की,
तुमसे कोई व्याख्या तो नहीं कर सकती....
पर तुम से प्रेम की कामना करती हूँ...
ऐसी ना जाने कितनी बाते....
चिराग, संगीता के प्यार से अनजान नहीं था...
लेकिन,
काजल मे उसके प्राण बसते थे
काज़ल, की मोहब्बत मे उसने खुद को भुला दिया
चिराग के घर, परिवार के सभी लोग भी ये बात जानते थे......
"रंगभूमि" नाट्य कला मंदिर
मे नये नाटक की तैयारी चल रही थी
सारे पात्र अपने अपने,
पात्रों के डायलॉग याद करने मे लगे थे....
"ए, छोटू!!!
"जरा इधर तो आना,"
संगीता,ने छोटू को आवाज़ लगाई,"चिराग ज़ी,आ गए क्या....?
"हाँ, दीदी,आ गए !, और..काज़ल मैडम ज़ी के साथ बैठ के बेंच पे चाय पी रहे है....!
एक झटके से संगीता उठ खड़ी हुई,और जाके, उन दोनों के सामने खड़ी हो गई...
गुलाबी वस्त्र मे, लिपटी संगीता, किसी गुलाबी फूल सी लग रही थी...पर गुस्से मे थी....
चिराग, और उसकी नज़रे टकराई...
संगीता ने तुरंत उसे अनदेखा कर दिया...मुँह फेर लिया...
एक स्मित मुस्कान के साथ चिराग ने भी नज़रे झुका ली...
काज़ल ने संगीता से बैठ ने का आग्रह किया,
पर,....संगीता,हाथ मे डायलॉग के ज़ेरोक्स लिए वैसे ही खड़ी रही...
चिराग समझ रहा था... संगीता क्यों नाराज़ थी
पर वो चुप था....
उसने संगीता से कोई बात नहीं की !
कल, फिर एक चिट्ठी मिली थी उसे संगीता की
फूलो से लिपटी हुई....
प्रणय निवेदन था संगीता की ओर से
प्रिय,
मेरी उठती, गिरती पलको
मे तुम ही समाये रहते हो
मेरी नज़रे,
हर वक़्त, तुम्हे ढूंढ़ती रहती है
मै खुद के प्रेम की,
तुमसे कोई व्याख्या तो नहीं कर सकती....
पर तुम से प्रेम की कामना करती हूँ...
ऐसी ना जाने कितनी बाते....
चिराग, संगीता के प्यार से अनजान नहीं था...
लेकिन,
काजल मे उसके प्राण बसते थे
काज़ल, की मोहब्बत मे उसने खुद को भुला दिया
चिराग के घर, परिवार के सभी लोग भी ये बात जानते थे......