...

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"लेखिका से प्रेम आसान है क्या "
लिखान, मे हो जिसका विशेष रुझान
नित, नविन
व्यक्तित्व को गढ़ती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

ख्यालो को शब्द रूप देती हुई,
नित,नविन
रचनाओं को रचती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

बाहरी आवरण हो
जिसका सहज़, सरल,मृदू भाषी
पर अपने ही विचारों मे उलझी हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

मोहब्बत के आकार, विकार को स्पष्ट करती हुई
नित नविन, किरदारों संग खेलती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

निष्ठुर, समाज के विकारो का संपादन करती हुई
निर्मल, निश्छल, प्रेम के चाह रखती हुई
ऐसी लेखिका संग प्रेम आसान है क्या

तुम संग बैठ, नदी किनारे
प्रेम प्रस्तुति को भी तुम्हारे,
नाटकीय ढंग से चाहती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

ओजस्वीता की ओढ, हो जिसे
यौवन की उन्माद, हुंकार लिए
काव्य सवेंदना को रचती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

अपने हर किरदार के गुणों के बारे मे
चर्चा करती हुई
तुम संग प्रेम की हज़ार बाते करती हुई
ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या

उसके अंतर्मन, की थाह लिए,
उसकी हर रचना मे रच,
बस के,
उसके, आत्मा को छू, कर
उसके रचे किरदार मे जब तुम ढल जाओगे...

तब तुम्हे, नहीं लगेगा कभी
"ऐसी लेखिका से प्रेम आसान है क्या "