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कभी किसी का दिल न दुखाएं

समीर कक्षा आठवीं का छात्र था। वह एक होनहार विद्यार्थी था। वह शहर के प्रसिद्ध व्यापारी श्री रूपचंद सेठ का पुत्र था। अपने माता-पिता का इकलौता बेटा होने एवं रईस खानदान से ताल्लुक रखने के कारण वह बिगड़ैल स्वभाव का बन गया था। शाला में दूसरे बच्चो को परेशान करने उन्हें नीचा दिखाने में उसे बहुत मज़ा आता था। परन्तु बच्चे डर के कारण शिक्षक से शिकायत करने में हिचकिचाते थे। इस कारण उसका मनोबल बढ़ता गया।
शाला से घर लौटते वक्त रास्ते में जानवरों, छोटे बच्चों, भिखारियों को सताना उसके दिनचर्या में शामिल था। शाला के कुछ बच्चें भी उसे ऐसा करने में मदद किया करते थे।
एकबार शाला में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। समीर भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया। चीट उठाकर जब उसने देखा तो पता चला उसे भिखारी का किरदार निभाना है। ये देखकर उसका सर चकरा गया, परन्तु अब वह प्रतियोगिता से नाम भी वापस नहीं ले सकता।
निश्चित दिन में कार्यक्रम शुरू हुआ। सभी बच्चों की तैयारी अच्छी थी। समीर का भी तैयारी ठीक- ठाक था। बारी-बारी से नाम पुकारा गया समीर को भी अपनी किरदार निभाना था। वह भिखारी का वेश धारण कर जैसे ही मंच पर आया सारे बच्चों को मौका मिल गया । जिस तरह वह सबको बेवजह तंग किया करता था सारे बच्चे उस पर टूट पड़े। ऐसा लग रहा था वे इसी दिन का इंतजार कर रहे थे।
प्रतियोगिता समाप्त हुई। समीर को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। समीर बहुत खुश था। परन्तु उसे महसूस हुआ कि उसने सबका दिल दुखाकर कितना गलत किया करता था। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।जब स्वंय पर बिताता है तभी हमें अहसास होता है। वह आगे से किसी को परेशान न करने संकल्प करता है।
रीता चटर्जी