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स्त्री और पुरुष
नई नवेली दुल्हन जब ससुराल आती है तो छोटी छोटी बातों का ध्यान रखती है और जरा सी चूक हो जाए तो उसका भविष्य तय हो जाता है।
एक बार एक गांव में कोई पहली बार ससुराल आयी नव योवना अपने नए घर , घर क्या था बस छप्पर था उसी को महल समझ कर खुश थी और अपनी हर पल होती परीक्षा के बीच अपनी खूबसूरती और अपनी उपस्थिति के लिए पतली ओढ़नी का घूंघट निकाले मेहनत और नफासत से घर का काम निपटा कर दोपहर को छप्पर के पिछवाड़े में सूखी लकड़ियों के ढेर की आड़ में एक मात्र पानी की बाल्टी भर कर स्नान करने लगी। दो चार दिन से एक दो छोकरे उधर ही मंडराते नजर आरहे थे। तभी उनकी खोजी नजर ईंधन की जलाऊ लकड़ियों के ढेर के पार खोजिली नजर पड़ी और आंखो में बिजली सी कोंधी ...! जरदे और पान मसाले से सड़ रही बत्तीसी खुली और ललचाई हुए दो आंखें जो छितरी हुई दाढ़ी पर टंगी हुई सी दूरबीन की तरह एक टक आर पार सी लग गई थी। तभी कलुआ भी उधर से मंडराता हुआ निकला और जा चिपका छैलू के।
अब दो तीन दिन से उनका धारावाहिक सा कार्यक्रम हो गया । शाम को बातों का मसाला मिल जाता।
देर रात तक बतियाते।
लाबू की खूबसूरत ओरत और उस पर भेड़ियाई नजर।
एक बार किसी सामाजिक कार्यक्रम में किसी बात को ले कर लाबु की खूबसूरत पत्नी हस दी और हसी पर्दे के उस पार तक दिख गई।
कुछ दूर गोबर के उपलों से ढके पत्थरों के ढेर पर कलुआ , श्यामा , छैलू एक - दूसरे के गल बहिया करे हुए बतिया रहे थे। बार बार अपनी लालची नजरे ऴाबू की खूबसूरत पत्नी काली बाई पार फेक रहे थे।
अब वो लंगूर टोली जोर जोर से ताली दे कर हसते और चोर नजरो से कालीबाई को जरूर देखते थे कि ध्यान देती है या नहीं। एक आधा बार संयोग से नजरे मिली और छोकरे ज्यादा उत्साहित होते। कभी छठे चोमासे किसी के काम में हाथ नहीं ब टा या पर आजकल किसी न किसी बहाने से घर के अंदर तक जाने आने लगे।
काली एक स्त्री थी और स्त्री अपने पीठ पर पड़ने वाली भद्दी नजर को भी छठी इन्द्रिय से ताड़ जाती है।
अब वो ज्यादा सावधान होने लगी। यह बात लंगूर टोली को बर्दास्त नहीं हो रही थी। बाते बढ़ाने लगे और गांव अब लंगूर टोली की बातो को हवा देने लगा।
एक दिन बालू गुस्से में घर आया और काली के साथ मार पीट की।
काली अकेले में खूब रोई पर वो किसी को बता भी नहीं सकती थी। सास भी रोज रोज बहाने ढूंढ़ती और भला बुरा कहने लगी। अब तो जीना ही दूभर कर दिया।
एक दिन तो हद ही पार हो गई जब गिन्न्या रात को घर में घुस *शेर और लोमड़ी बनाम लंगूर और भेड़*


कहानी का शीर्षक तो लंगूर और भेड़ ही रखने वाला था पर विलफ्रेड परेटो की आड़ से अपनी बात समझ पाऊंगा । इसलिए शेर और लोमड़ी शब्द और जोड़ना पड़ा।
खैर डर किसको नहीं लगता। नई नवेली दुल्हन जब ससुराल आती है तो छोटी छोटी बातों का ध्यान रखती है और जरा सी चूक हो जाए तो उसका भविष्य तय हो जाता है।
एक बार एक गांव में कोई पहली बार ससुराल आयी नव योवना अपने नए घर , घर क्या था बस छप्पर था उसी को महल समझ कर खुश थी और अपनी हर पल होती परीक्षा के बीच अपनी खूबसूरती और अपनी उपस्थिति के लिए पतली ओढ़नी का घूंघट निकाले मेहनत और नफासत से घर का काम निपटा कर दोपहर को छप्पर के पिछवाड़े में सूखी लकड़ियों के ढेर की आड़ में एक मात्र पानी की बाल्टी भर कर स्नान करने लगी। दो चार दिन से एक दो छोकरे उधर ही मंडराते नजर आरहे थे। तभी उनकी खोजी नजर ईंधन की जलाऊ लकड़ियों के ढेर के पार खोजिली नजर पड़ी और आंखो में बिजली सी कोंधी ...! जरदे और पान मसाले से सड़ रही बत्तीसी खुली और ललचाई हुए दो आंखें जो छितरी हुई दाढ़ी पर टंगी हुई सी दूरबीन की तरह एक टक आर पार सी लग गई थी। तभी कलुआ भी उधर से मंडराता हुआ निकला और जा चिपका छैलू के।
अब दो तीन दिन से उनका धारावाहिक सा कार्यक्रम हो गया । शाम को बातों का मसाला मिल जाता।
देर रात तक बतियाते।
लाबू की खूबसूरत ओरत और उस पर भेड़ियाई नजर।
एक बार किसी सामाजिक कार्यक्रम में किसी बात को ले कर लाबु की खूबसूरत पत्नी हस दी और हसी पर्दे के उस पार तक दिख गई।
कुछ दूर गोबर के उपलों से ढके पत्थरों के ढेर पर कलुआ , श्यामा , छैलू एक - दूसरे के गल बहिया करे हुए बतिया रहे थे। बार बार अपनी लालची नजरे ऴाबू की खूबसूरत पत्नी काली बाई पार फेक रहे थे।
अब वो लंगूर टोली जोर जोर से ताली दे कर हसते और चोर नजरो से कालीबाई को जरूर देखते थे कि ध्यान देती है या नहीं। एक आधा बार संयोग से नजरे मिली और छोकरे ज्यादा उत्साहित होते। कभी छठे चोमासे किसी के काम में हाथ नहीं ब टा या पर आजकल किसी न किसी बहाने से घर के अंदर तक जाने आने लगे।
काली एक स्त्री थी और स्त्री अपने पीठ पर पड़ने वाली भद्दी नजर को भी छठी इन्द्रिय से ताड़ जाती है।
अब वो ज्यादा सावधान होने लगी। यह बात लंगूर टोली को बर्दास्त नहीं हो रही थी। बाते बढ़ाने लगे और गांव अब लंगूर टोली की बातो को हवा देने लगा।
एक दिन बालू गुस्से में घर आया और काली के साथ मार पीट की।
काली अकेले में खूब रोई पर वो किसी को बता भी नहीं सकती थी। सास भी रोज रोज बहाने ढूंढ़ती और भला बुरा कहने लगी। अब तो जीना ही दूभर कर दिया।
एक दिन तो हद ही पार हो गई जब गिन्न्या रात को घर में घुस गया । काली ने प्रतिरोध किया और घर वालो को जगाया तब तक गन्न्या भाग गया।
अब तो मामला और भी बढ़ गया। गन्या अब हर हाल में खुद को गया और काली की बदनीयत साबित करने के लिए कहानियां गढ़ने लगा।
गिन्नया अब गाव के लड़कों का रोल मॉडल बन गया और काली अब कलंक बन गई।
गांव के पढ़े लिखे से ले कर गरीब गुरबा तक काली का उदाहरण दे कर अपनी अपनी घरवाली को चरित्र पर व्याख्यान सुनाते और यह सुनिश्चित करते कि कहीं अपनी वाली ना बहक जाए। जब उनको यह सुनने को मिल जाता कि "मै तो इसी लुगाई की शक्ल तक ना देखू।" तब तक तसल्ली नहीं होती और नैतिकता और आदर्श की दुहाई देने लगते।
तंग आकर काली ने अपनी सास की एक दिन पिटाई कर दी और उस दिन से सबको यकीन हो गया कि काली जैसी कोई कलंकिनी इस दुनिया में कहीं नहीं है।
पड़ोस की कमली कभी कभार काली के पास आजाती थी और गांव की बात काली को और काली कि बात गांव तक पहुंचा देती थी । यही संचार का माध्यम और सहानभूति की एक डोर थी। । काली ने प्रतिरोध किया और घर वालो को जगाया तब तक गन्न्या भाग गया।
अब तो मामला और भी बढ़ गया। गन्या अब हर हाल में खुद को निर्दोष और काली की बदनीयत साबित करने के लिए कहानियां गढ़ने लगा।
गिन्नया अब गाव के लड़कों का रोल मॉडल बन गया और काली अब कलंक बन गई।
गांव के पढ़े लिखे से ले कर गरीब गुरबा तक काली का उदाहरण दे कर अपनी अपनी घरवाली को चरित्र पर व्याख्यान सुनाते और यह सुनिश्चित करते कि कहीं अपनी वाली ना बहक जाए। जब उनको यह सुनने को मिल जाता कि "मै तो इसी लुगाई की शक्ल तक ना देखू।" तब तक तसल्ली नहीं होती और नैतिकता और आदर्श की दुहाई देने लगते।
तंग आकर काली ने अपनी सास की एक दिन पिटाई कर दी औ एर उस दिन से सबको यकीन हो गया कि काली जैसी कोई कलंकिनी इस दुनिया में कहीं नहीं है।
पड़ोस की कमली कभी कभार काली के पास आजाती थी और गांव की बात काली को और काली कि बात गांव तक पहुंचा देती थी । यही संचार का माध्यम और सहानभूति की एक डोर थी।
कमली दिल की साफ थी और अपनी बीती हुई हकीकत से काली पर बीत रही को समझती थी। पर वो कभी भी खुल कर गांव की औरतों को नहीं कह सकती थी क्योंकि विश्वास बस अंदर से था सभी को पर अपने अपने पतियों से किया वादा नहीं तोड़ सकती थी।
कमली काली की उम्मीद थी दिन की थकान कुछ पल की उसकी गांव को दी जाने वाली गालियां और उलाहने दर्द की तकलीफ़ कम कर देते थे। कमली अक्सर गांव की औरतों के सने काली की बुराई के बीच मेहनत की तारीफ कर दिया करती थी और दूसरी औरतों की प्रतिक्रिया का इंतजार किया करती और सावधानी से अपनी बात रख कर एक आधी आलोचना का तड़का लगा कर सुरक्षित बच जाती थी। कमोबेश हर औरत एक अज्ञात बंधन में बंधी हुई भेड़ की तरह हो जाती है।उसको वहीं देखना सुनना और बोलना होता है जो उसका घरवाला चाहता है।
उधर गिन्या अब गांव के छोकरो के बीच बैठ कर दिन भर चौपाल पर चोकड़ी के साथ आती जाती औरतों को घूरता और उनके चरित्र की चीर फाड़ करता और छोकरो को खुद के साथ या अपने दोस्त के साथ सैटिंग होने की बात पूरे आत्म विश्वास के साथ कहता।
वो अब मदारी जैसा हो गया था, जब भी चौपाल पर आता छोकरो का तांता लग जाता। उसकी बहादुरी और कारनामों की कसीदाकारी होने लगी। अब वो अच्छे खासे समूह का नेता हो गया था। एक बार उसने 8/10 साल के लड़के को निर्मम तरीके से पीटा तब से ज्यादातर छोकरे उसके सहायक बन खुद को भी छोटा मोटा डॉन घोषित कर चुके।
अब गीन्या से उसका नाम गणेश राम हो गया था।