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♥️सपनों की रानी— "यवनप्रिया"♥️
यवनप्रिया कौन थी?!♥️

यदि प्रश्न उठे कि यूरोप के लोग प्राचीन काल और मध्यकाल में भारत की ओर क्यों आकर्षित हुए तो ज़्यादातर लोग उत्तर देंगे कि वो विस्तारवादी थे। कंपास (दिशासूचक यंत्र), दूरबीन और पाल-नौकाओं का आविष्कार/आगमन हो चुका था किंतु अगर मुझे पूछा जाए तो मैं केवल एक शब्द में उत्तर दूंगा—“यवनप्रिया!”

आप कहेंगे— ये क्या बात हुई? लेकिन यही सत्य है। यवनप्रिया का अर्थ है— यवनों ( यूनानियों या यूरोपियों) को जो प्रिय थी। आखिर ऐसा क्या था या ऐसी क्या वस्तु थी जो यवनों को वास्तव में प्रिय थी और जिसके लिए प्राचीन व मध्यकाल के यूरोपीय राजा, सरदार-सामंत व रईस सोने के रूप में कोई भी कीमत देने को तैयार थे।

यूरोप मूलरूप से ठंडा क्षेत्र है।शीतऋतु असहनीय होती है। प्राचीन व मध्यकाल में भी ऐसा ही था। यूरोप में भोजन के रूप में (विशेष रूप से सर्दियों में ) मुख्य रूप से मांस का भक्षण किया जाता था। मांस को पकाने, स्वादिष्ट और महकदार बनाने के लिए जिन मसालों का प्रयोग होता था वो भारत से आयात किए जाते थे।

इन मसालों की सूची में सबसे ऊपर नाम आता है— ब्लैक पैपर (Black pepper) अर्थात काली मिर्च का। वही “यवनप्रिया” थी। उसी ने भारत को पहले ' सोने की चिड़िया' बनाया क्योंकि काली मिर्च के व्यापार से भारत में स्वर्ण दीनारे आ रही थीं किन्तु इसी काली मिर्च के कारण यूरोपीय व्यापारी हमारे शासक बन बैठे और हम पर सन् 1947 तक शासन किया। है न रूचिकर बात?!

तो अगली बार जब भी आप पिज़्ज़ा, सलामी बर्गर या फ्रेंच फ्राईज़ आर्डर करें तो " यवनप्रिया" को ज़रूर याद रखें क्योंकि उसके बिना पिज़्ज़ा, सलामी बर्गर या फ्रेंच फ्राईज़ में वो बात नहीं आती, वो स्वाद नहीं आता! आहह! महकती, स्वाद बढ़ाती यवनप्रिया! इस लेख के मुखचित्र पर मत जाइएगा।वो सिर्फ दृष्टिभ्रम है!🤗🌺

— Vijay Kumar
© Truly Chambyal

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