...

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संवाद -वैशया और मुसाफिर।।
वैशया -क्या हुआ साहब आप यहां क्यूं रूक गए ?मेरा घर तो आगे है!🧕
शेखर -नही कुछ नहीं हुआ मुझे धीरे चलने की आदत है इसलिए तुम्हारे पीछे आ रहा था 🧔
वैशया -मुसकुराई और फिर चलने लगी ! शेखर बाबू भी पीछे पीछे चलने लगा ! आगे जाकर वैशया एक झोपड़े के पास रूक गयी।।🧕

वैशया -शाहब पहुंच गए हैं ,साहब आप मेरे गरीब खाने में ! लेकिन अन्दर आने से पहले मेरे हाथ में २०० रूपए थमा दीजिए ! आपका क्या पता बाद में बिना पैसे दिए निकल जाओ।।🧕

🧔 शेखर फटाफट अपने पर्स को वैशया से दूसरी तरफ छुपा कर २०० -२०० के दो नोट निकाल कर वैशया को थमाते हुए झोपड़े के भीतर प्रवेश कर लेता है।।

🧕 वैशया -आइए शहाब बैठिए !

🧔 शेखर कोने में पड़ी एक कुर्सी पर तशरीफ़ रखकर बैठ कर सामने टंगे मोनालिसा के चित्र को देखने लग पड़ा।।

🧕-अरे साहब!उस चित्र में क्या नजरें गड़ा कर बैठे है? ज़रा इधर भी देखिए असली खूबसूरती तो यहां है।।
#वारतालाप
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